व्रतधारी दम्पति व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
धरती पर दरी या कंबल बिछाकर शयन करें अथवा गद्दा-तकिया हटा के सादे पलंग पर शयन करें ।
व्रतधारी तीनों समय स्नान करें ।
झूठ न बोलें एवं भोगों का त्याग कर दें ।
किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचायें ।
सत्संग-श्रवण, भजन-कीर्तन, स्तुति-पाठ तथा अधिक-से-अधिक गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करें ।
भक्तिभाव से सद्गुरुदेव को सर्वव्यापक परमात्मस्वरूप जानकर उनकी पूजा करें और स्तुति करें : ‘प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान हैं । समस्त प्राणी आपमें और आप समस्त प्राणियों में निवास करते हैं । आप अव्यक्त और परम सूक्ष्म हैं । आप सबके साक्षी हैं । आपको मेरा नमस्कार है ।’