अद्भुत प्रभाव-संपन्न संतान की प्राप्ति करानेवाला व्रत : पयोव्रत

पयोव्रत

11 मार्च से 20 मार्च 2024

अद्भुत प्रभाव-संपन्न संतान की प्राप्ति करानेवाला व्रत : पयोव्रत

अद्भुत प्रभाव-सम्पन्न संतान की प्राप्ति की इच्छा रखनेवाले स्त्री-पुरुषों के लिए शास्त्रों में पयोव्रत करने का विधान है । यह भगवान को संतुष्ट करनेवाला है । इसलिए इसका नाम ‘सर्वयज्ञ’ और ‘सर्वव्रत’ भी है । यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है । इसमें केवल दूध पीकर रहना होता है ।

व्रत के नियम

व्रतधारी दम्पति व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करें ।

धरती पर दरी या कंबल बिछाकर शयन करें अथवा गद्दा-तकिया हटा के सादे पलंग पर शयन करें ।

व्रतधारी तीनों समय स्नान करें ।

झूठ न बोलें एवं भोगों का त्याग कर दें ।

किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचायें ।

सत्संग-श्रवण, भजन-कीर्तन, स्तुति-पाठ तथा अधिक-से-अधिक गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करें ।

भक्तिभाव से सद्गुरुदेव को सर्वव्यापक परमात्मस्वरूप जानकर उनकी पूजा करें और स्तुति करें : ‘प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान हैं । समस्त प्राणी आपमें और आप समस्त प्राणियों में निवास करते हैं । आप अव्यक्त और परम सूक्ष्म हैं । आप सबके साक्षी हैं । आपको मेरा नमस्कार है ।’

व्रत के एक दिन पूर्व (10 मार्च) से समाप्ति (20 मार्च) तक करने योग्य

  • द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) से भगवान या सद्गुरु का पूजन करें तथा इस मंत्र की एक माला जपें ।
  • यदि सामर्थ्य हो तो दूध में पकाये हुए तथा घी और गुड़ मिले हुए चावल का नैवेद्य अर्पण करें और उसीका देशी गौ-गोबर के कंडे जलाकर द्वादशाक्षर मंत्र से हवन करें । (नैवेद्य हेतु दूध के साथ गुड़ का अल्प मात्रा में उपयोग करें ।) नैवेद्य को भक्तों में थोड़ा-थोड़ा बाँट दें ।
  • सम्भव हो तो दो निर्व्यसनी, सात्त्विक ब्राह्मणों को खीरका भोजन करायें । अमावस्या के दिन (10 मार्च को) खीर का भोजन करें । 11 मार्च को निम्नलिखित संकल्प करें तथा 20 मार्च तक केवल दूध पीकर रहें ।

संकल्प : मम सकलगुणगणवरिष्ठमहत्त्वसम्पन्नायुष्मत्पुत्रप्राप्तिकामनया विष्णुप्रीतये पयोव्रतमहं करिष्ये ।

व्रत-समाप्ति के अगले दिन (21 मार्च को) सात्विक ब्राह्मण को तथा अतिथियों को अपने सामर्थ्य अनुसार शुद्ध, सात्त्विक भोजन कराना चाहिए । दीन, अंधे और असमर्थ लोगों को भी अन्न आदि से संतुष्ट करना चाहिए । जब सब लोग खा चुके हों तब उन सबके सत्कार को भगवान की प्रसन्नता का साधन समझते हुए अपने भाई-बंधुओं के साथ स्वयं भोजन करें । इस प्रकार विधिपूर्वक यह व्रत करने से भगवान प्रसन्न होकर व्रत करनेवाले की अभिलाषा पूर्ण करते हैं ।

ध्यान रहें

ब्राहमण भोजन के लिए बिना गुड़-मिश्रित खीर बनायें एवं एकादशी (20 मार्च) के दिन खीर चावल की न बनायें अपितु मोरधन, सिंघाड़े का आटा, राजगिरा आदि उपवास में खायी जानेवाली चीजें डालकर बनायें ।

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