Pregnancy में अति मीठा : शिशु के लिए अभिशाप !!!

Pregnancy में अति मीठा : शिशु के लिए अभिशाप !!!

जैसे-जैसे हर माह प्रेग्नेंसी का सफ़र आगे बढ़ता है, सगर्भा को तरह-तरह की चीजें खाने का मन करता है, कभी खट्टी, कभी नमकीन, कभी तीखी, कभी मीठी… इन सभी टेस्ट्स में से मिठाई का ग्राफ हमेशा सबसे ऊपर ही रहता है । मीठे को देखते ही मुँह में पानी आ जाना स्वाभाविक है । लेकिन गर्भवती माता के खान-पान का सीधा प्रभाव शिशु पर पड़ता है, इसलिए उसे मीठा खाने को लेकर बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है । इसलिए मिठाईयों की शौक़ीन मातायें पहले इस लेख को ध्यान पढ़ें और फिर तय करें कि उन्हें कब, कितनी और कैसी मिठास लेनी है ।

मिठाई की दुकान : साक्षात् यमदूत का घर

  • आचार्य सुश्रुत ने कहा है : ‘भैंस का दूध पचने में अति भारी होने से रसवाही स्रोतों को कफ से अवरुद्ध करनेवाला एवं जठराग्नि का नाश करनेवाला है !’ यदि भैंस का दूध इतना नुकसान कर सकता है तो उसका मावा जठराग्नि का कितना भयंकर नाश करता होगा ? मावे के लिए शास्त्र में ‘किलाटक’ शब्द का उपयोग किया गया है, जो भारी होने के कारण भूख मिटा देता है : किरति विक्षिपत क्षुधं गुरुत्वात् कृ विक्षेपे किरे लश्रति किलाटः इति हेमः ततः स्वार्थेकन् ।
  • नयी ब्याही हुई गाय-भैंस के शुरुआत के दूध को ‘पीयूष’ भी कहते हैं । यही कच्चा दूध बिगड़कर गाढ़ा हो जाता है, जिसे ‘क्षीरशाक’ कहते हैं । दूध में दही अथवा छाछ डालकर उसे फाड़ लिया जाता है फिर उसे स्वच्छ वस्त्र में बाँधकर उसका पानी निकाल लिया जाता है जिसे ‘तक्रपिंड’ (छेना या पनीर) कहते हैं ।
  • ‘भावप्रकाश निघंटु’ में लिखा गया है कि ‘ये सब चीजें पचने में अत्यंत भारी एवं कफकारक होने से अत्यंत तीव्र जठराग्निवालों को ही पुष्टि देती हैं, अन्य के लिए तो रोगकारक ही साबित होती हैं ।’
  • श्रीखंड और पनीर भी पचने में अति भारी, कब्जियत करनेवाले हैं । ये चर्बी, कफ, पित्त एवं सूजन उत्पन्न करनेवाले हैं । ये यदि नहीं पचते हैं तो चक्कर, ज्वर, रक्तपित्त (रक्त का बहना), रक्तवात, त्वचारोग, पांडुरोग (रक्त न बनना) तथा रक्त का कैंसर आदि रोगों को जन्म देते हैं ।
  • जब मावा, पीयूष, छेना (तक्रपिंड), क्षीरशाक, दही आदि से मिठाई बनाने के लिए उनमें शक्कर मिलायी जाती है, तब तो वे और भी ज्यादा कफ करनेवाले, पचने में भारी हो जाते हैं । पाचन में अत्यंत भारी ऐसी मिठाइयाँ खाने से कब्जियत एवं मंदाग्नि होती है जो सब रोगों का मूल है । इसका योग्य उपचार न किया जाए तो ज्वर आता है एवं ज्वर को दबाया जाय अथवा गलत चिकित्सा हो जाय तो रक्तपित्त, रक्तवात, त्वचा के रोग, पांडुरोग, रक्त का कैंसर, गाँठ, चक्कर आना, उच्च रक्तचाप, गुर्दे के रोग, लकवा, मधुमेह, कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदयरोग आदि रोग होते हैं । कफ बढ़ने से खाँसी, दमा, क्षयरोग जैसे रोग होते हैं । मंदाग्नि होने से सातवीं धातु (वीर्य) कैसे बन सकती है ? अतः अंत में नपुंसकता आ जाती है !
  • आज का विज्ञान भी कहता है कि ‘बौद्धिक कार्य करनेवाले व्यक्ति के लिए दिन के दौरान भोजन में केवल ४० से ५० ग्राम वसा (चरबी) पर्याप्त है और कठिन श्रम करनेवाले के लिए ९० ग्राम । इतनी वसा तो सामान्य भोजन में लिये जानेवाले घी, तेल, मक्खन, गेहूँ, चावल, दूध आदि में से ही मिल जाती है । इसके अलावा मिठाई खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है । धमनियों की जकड़न बढ़ती है, नाड़ियाँ मोटी होती जाती हैं । दूसरी ओर, रक्त में चरबी की मात्रा बढ़ती है और वह इन नाड़ियों में जाती है। जब तक नाड़ियों में कोमलता होती है तब तक वे फैलकर इस चरबी को जाने के लिए रास्ता देती है । परंतु जब वे कड़क हो जाती हैं, उनकी फैलने की सीमा पूरी हो जाती है तब वह चरबी वहीं रुक जाती है और हृदयरोग को जन्म देती है ।’
  • मिठाई में अनेक प्रकार की दूसरी ऐसी चीजें भी मिलायी जाती हैं, जो घृणा उत्पन्न करें । शक्कर अथवा बूरे में कॉस्टिक सोडा अथवा चॉक का चूरा भी मिलाया जाता है जिसके सेवन से आँतों में छाले पड़ जाते हैं । प्रत्येक मिठाई में प्रायः कृत्रिम (एनेलिन) रंग मिलाये जाते हैं जिसके कारण कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं ।
  • जलेबी में कृत्रिम पीला रंग (मेटालीन येलो) मिलाया जाता है, जो हानिकारक है । लोग उसमें टॉफी, खराब मैदा अथवा घटिया किस्म का गुड़ भी मिलाते हैं । उसे जिन आयस्टोन एवं पेराफील से ढका जाता है, वे भी हानिकारक हैं । उसी प्रकार मिठाइयों को मोहक दिखानेवाले चाँदी के वर्क एल्यूमिनियम फॉइल में से बने होते हैं ।
  • आधुनिक विदेशी मिठाइयों में पीपरमेंट, गोले, चॉकलेट, बिस्कुट, लालीपॉप, केक, टॉफी, जेम्स, जेलीज़, ब्रेड आदि में घटिया किस्म का मैदा, सफेद खड़ी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, बाजरी अथवा अन्य अनाज का बिगड़ा हुआ आटा मिलाया जाता है । अच्छे केक में भी अण्डे का पाउडर मिलाकर बनावटी मक्खन, घटिया किस्म के शक्कर एवं जहरीले सुगंधित पदार्थ मिलाये जाते हैं । नानखटाई में इमली के बीज के आटे का उपयोग होता है । ‘कन्फेक्शनरी’ में फ्रेंच चॉक, ग्लुकोज़ का बिगड़ा हुआ सीरप एवं सामान्य रंग अथवा एसेन्स मिलाये जाते हैं । बिस्कुट बनाने के उपयोग में आनेवाले आकर्षक जहरी रंग हानिकारक होते हैं ।
  • इस प्रकार, ऐसी मिठाइयाँ वस्तुतः मिठाई न होते हुए बल, बुद्धि और स्वास्थ्यनाशक, रोगकारक एवं तमस बढ़ानेवाली साबित होती हैं ।
  • मिठाइयों का शौक कुप्रवृत्तियों का कारण एवं परिणाम है । डॉ. ब्लोच लिखते हैं कि ‘मिठाई का शौक जल्दी कुप्रवृत्तियों की ओर प्रेरित करता है । जो बालक मिठाई के ज्यादा शौकीन होते हैं उनके पतन की ज्यादा संभावना रहती है और वे दूसरे बालकों की अपेक्षा हस्तमैथुन जैसे कुकर्मों की ओर जल्दी खिंच जाते हैं ।
  • स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है : “मिठाई (कंदोई) की दुकान साक्षात् यमदूत का घर है ।”
  • जैसे, खमीर लाकर बनाये गये इडली-डोसे आदि खाने में तो स्वादिष्ट लगते हैं परंतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं, इसी प्रकार मावे एवं दूध को फाड़कर बने पनीर से बनायी गयी मिठाइयाँ लगती तो मीठी हैं पर होती हैं जहर के समान । मिठाई खाने से लीवर और आँतों की भयंकर असाध्य बीमारियाँ होती हैं ।

गर्भावस्था में मिठाईयाँ कितनी सुरक्षित?

ये तो वो हकीकत है जिससे एक व्यस्क व्यक्ति प्रभावित होता है । गर्भ में पल रहे शिशु का शरीर तो अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है । माँ के भोजन से उसका शरीर पोषण प्राप्त करता है । ऐसे में गर्भवती माता का मिठाईयों का शौक शिशु के लिए कैसे हानिकारक है, यह भी समझते हैं । गर्भावस्था में अधिक मीठा खाने से –   

  1. माता का वजन बढ़ सकता है, जिसके कारण कई बार पीठ दर्द, पैरों में दर्द और गर्भकालीन मधुमेह जैसी जटिलताएं भी हो सकती हैं ।
  2. अधिक मीठा खाने से माता को एक्‍यूट फैटी लिवर सिंड्रोम हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण को मेटाबॉलिक सिंड्रोम हो सकता है और आगे चलकर बच्‍चा मोटापे का शिकार हो सकता है ।
  3. रक्त में सुक्रोज का स्तर अधिक हो जाता है । शिशु मेंडायबिटीज- टाइप 2 का खतरा रहता है ।
  4. अधिक शुगर प्‍लेसेंटा से शिशु को नुकसान पहुँचा सकती है, भ्रूण में ब्‍लड शुगर के स्‍तर को बढ़ा सकती है और शिशु का आकार बढ़ सकता है । इस स्थिति को मैक्रोसोमिया कहते हैं ।
  5. शिशु का आकार बड़ा होने पर सिजेरियन डिलीवरी और प्रीमैच्‍योर डिलीवरी की नौबत आ सकती है ।
  6. गर्भावस्था के दौरान अधिक चीनीवाली चीजें खाने से बच्चे को अस्थमा का खतरा हो सकता है और यह उसकी संज्ञानात्मक क्षमताओं को भी प्रभावित कर सकता है । अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, गर्भवती महिला द्वारा चीनी का सेवन उसके बच्चे की याददाश्त और सीखने को प्रभावित कर सकता है ।
  7. कई बार ज्यादा मीठा खाना होनेवाले बच्चे में हृदय रोग का कारण भी बन सकता है ।
  8. सभी गर्भवती महिलाओं को अपने गर्भावस्था के आहार में सैकरीन को शामिल करने से बचना चाहिए क्योंकि इसके उपयोग से बच्चे में मूत्राशय कैंसर होने की संभावना बढ़ सकती है ।

तो अब क्या करें ?

मिठास को पोषक (कैलोरी युक्त) और गैर-पोषक (कैलोरी रहित) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है । गर्भवती महिलाओं के लिए प्राकृतिक मिठास हमेशा सबसे अच्छा विकल्प होता है । कृत्रिम मिठास गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान सबसे सुरक्षित मानी गई है । गर्भावस्था के दौरान शरीर में मीठे की कमी को पूरा करने के लिए फल (अंगूर, केले, संतरे, सेब, खरबूजा, आम), शहद, मिश्री, देसी गुड़ का पानी, ब्राउन शुगर, किशमिश, खजूर, अंजीर (सूखे मेवे भिगोकर ही उपयोग करें), गन्ना, गन्ने का रस, नारियल पानी, घर में बने आटे के बिस्किट आदि का सेवन सीमित मात्रा में किया जा सकता है ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।