Summer care

भगवन्नाम गर्भस्थ शिशु को गर्भ में अपने अनेक पूर्व जन्मों का स्मरण रहता है । Read more
प्रार्थना घर आँगन में किलकारियों की गूंज किसे अच्छी नहीं लगती ? इस गूंज की Read more
हरि ॐ गुंजन महत्त्व : मातृत्व का सुख बहुत ही सौम्य और मधुर होता है Read more
गर्मियों में गर्भवती बहनों के लिए BEST... पीपलकंद पवित्र पीपल वृक्ष के आरक्त (लाल) सुकोमल Read more
गर्भस्थ शिशु के लिए केवल माँ की नहीं... पिता की भी भूमिका महत्वपूर्ण      Read more
गर्भिणी पर टेलीविजन के घातक प्रभाव  गर्भावस्था में माँ देखने–सुनने-सोचने से लेकर अपने प्रत्येक क्रियाकलाप Read more
प्लास्टिक बोतल में दूध ??? कहा जाता है कि शिशु को जन्म के बाद छह Read more
ये मोबाइल नहीं; बीमारियों का घर है... आधुनिक विज्ञान की यह विशेषता है कि वह Read more
भोजन पात्र विवेक भोजन को शुद्ध, पौष्टिक, हितकर व सात्त्विक बनाने के लिए हम जितना Read more
प्रेग्नेंसी में स्मोकिंग से होता है भारी नुकसान यदि आपकी धर्मपत्नी के गर्भ में एक Read more
  • वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है । अप्रैल, मई तथा जून के प्रारंभिक दिनों का समावेश ग्रीष्म ऋतु में होता है । इन दिनों में सूर्य की किरणें अत्यंत उष्ण होती हैं । इनके सम्पर्क से हवा रूक्ष बन जाती है और यह रूक्ष-उष्ण हवा अन्नद्रव्यों को सुखाकर शुष्क बना देती है तथा स्थिर चर सृष्टि में से आर्द्रता, चिकनाई का शोषण करती है । इस अत्यंत रूक्ष बनी हुई वायु के कारण, पैदा होने वाले अन्न-पदार्थों में कटु, तिक्त, कषाय रसों का प्राबल्य बढ़ता है और इनके सेवन से मनुष्यों में दुर्बलता आने लगती है । शरीर में वातदोष का संचय होने लगता है । अतः इस ऋतु में मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके, जलीय, ताजे, स्निग्ध, शीत गुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए । इस ऋतु में प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम होता है जिससे प्यास ज्यादा लगती है । शरीर में जलीयांश कम होने से पेट की बीमारियाँ, दस्त, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं । इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर शीतल जल बार-बार पीना हितकर है ।
  • आहारः ग्रीष्म ऋतु में साठी के पुराने चावल, गेहूँ, दूध, मक्खन, गौघृत के सेवन से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति तथा शक्ति आती है । सब्जियों में लौकी, गिल्की, परवल, नींबू, केले के फूल, चौलाई, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में द्राक्ष, तरबूज, खरबूजा, एक-दो-केले, नारियल पानी, मौसमी, आम, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभदायी है ।
  • इस ऋतु में तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए । नमकीन, रूखा, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ, दही, अमचूर, आचार, इमली आदि न खायें । गरमी से बचने के लिए बाजारू शीत पेय (कोल्ड ड्रिंक्स), आइस क्रीम, आइसफ्रूट, डिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें । इनके सेवन से शरीर में कुछ समय के लिए शीतलता का आभास होता है परंतु ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं । इनकी जगह कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, पानी में नींबू का रस तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबत, जीरे की शिकंजी, ठंडाई, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, दूध और चावल की खीर, गुलकंद आदि शीत तथा जलीय पदार्थों का सेवन करें । इससे सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर का रक्षण किया जा सकता है । फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला, दाँत एवं आँतों पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए इन दिनों में मटके या सुराही का पानी पिएँ ।
  • इस ऋतु में मुलतानी मिट्टी से स्नान करना वरदान स्वरूप है । इससे जो लाभ होता है, साबुन से नहाने से उसका 1 प्रतिशत लाभ भी नहीं होता । 

बाजारू ठंडे पेय पदार्थों से स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुँचती है यह तो लोग जानते ही नहीं हैं । दूषित तत्त्वों, गंदे पानी एवं अभक्ष्य पदार्थों के रासायनिक मिश्रण से तैयार किये गये अपवित्र बाजारू ठंडे पेय हमारी तंदरुस्ती एवं पवित्रता का घात करते हैं । इसलिए उनका त्याग करके हमें आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कृति में वर्णित पेय पदार्थों से ही ठंडक प्राप्त करनी चाहिए । यहाँ कुछ ग्रीष्मकालीन खाद्य व पेय पदार्थों की जानकारी दी जा रही है –

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।