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श्रीगणेश चतुर्थी गणेश चतुर्थी अर्थात स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों को सत्ता देनेवाले चैतन्यस्वरूप Read more
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ !!!परात्पर ब्रह्म, निर्गुण-निराकार, पूर्णकाम, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर, परमेश्वर, देवेश्वर, विश्वेश्वर…. Read more
पुत्रदा एकादशी के व्रत से पुत्रप्राप्ति युधिष्ठिर बोले : श्रीकृष्ण ! कृपा करके पौष मास Read more
पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए अपनाएं ये पद्धति शास्त्र कहते हैं : आजकल सभी Read more
गर्भनाल काटने का सही समय ऋषि विज्ञान ऋषियों-महापुरुषों के वचनों पर अध्ययन एवं अन्वेषण कर Read more
अधिक मास: 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023 अधिक मास अधिक मास को 'मल मास' Read more
चतुर्मास में विशेष पठनीय – पुरुष सूक्त     जो चतुर्मास में संध्या के समय Read more
सत्संग सत्संग क्या है ? सत्यस्वरूप जो पहले था, अभी है, बाद में रहेगा उसको Read more
श्वासोश्वास की साधना... हर कोई चिंतित है... इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का Read more
ध्यान  संस्कार साधना के क्रम में आज हम चर्चा करेंगे ऐसी साधना के विषय में Read more
  • वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है । अप्रैल, मई तथा जून के प्रारंभिक दिनों का समावेश ग्रीष्म ऋतु में होता है । इन दिनों में सूर्य की किरणें अत्यंत उष्ण होती हैं । इनके सम्पर्क से हवा रूक्ष बन जाती है और यह रूक्ष-उष्ण हवा अन्नद्रव्यों को सुखाकर शुष्क बना देती है तथा स्थिर चर सृष्टि में से आर्द्रता, चिकनाई का शोषण करती है । इस अत्यंत रूक्ष बनी हुई वायु के कारण, पैदा होने वाले अन्न-पदार्थों में कटु, तिक्त, कषाय रसों का प्राबल्य बढ़ता है और इनके सेवन से मनुष्यों में दुर्बलता आने लगती है । शरीर में वातदोष का संचय होने लगता है । अतः इस ऋतु में मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके, जलीय, ताजे, स्निग्ध, शीत गुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए । इस ऋतु में प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम होता है जिससे प्यास ज्यादा लगती है । शरीर में जलीयांश कम होने से पेट की बीमारियाँ, दस्त, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं । इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर शीतल जल बार-बार पीना हितकर है ।
  • आहारः ग्रीष्म ऋतु में साठी के पुराने चावल, गेहूँ, दूध, मक्खन, गौघृत के सेवन से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति तथा शक्ति आती है । सब्जियों में लौकी, गिल्की, परवल, नींबू, केले के फूल, चौलाई, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में द्राक्ष, तरबूज, खरबूजा, एक-दो-केले, नारियल पानी, मौसमी, आम, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभदायी है ।
  • इस ऋतु में तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए । नमकीन, रूखा, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ, दही, अमचूर, आचार, इमली आदि न खायें । गरमी से बचने के लिए बाजारू शीत पेय (कोल्ड ड्रिंक्स), आइस क्रीम, आइसफ्रूट, डिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें । इनके सेवन से शरीर में कुछ समय के लिए शीतलता का आभास होता है परंतु ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं । इनकी जगह कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, पानी में नींबू का रस तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबत, जीरे की शिकंजी, ठंडाई, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, दूध और चावल की खीर, गुलकंद आदि शीत तथा जलीय पदार्थों का सेवन करें । इससे सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर का रक्षण किया जा सकता है । फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला, दाँत एवं आँतों पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए इन दिनों में मटके या सुराही का पानी पिएँ ।
  • इस ऋतु में मुलतानी मिट्टी से स्नान करना वरदान स्वरूप है । इससे जो लाभ होता है, साबुन से नहाने से उसका 1 प्रतिशत लाभ भी नहीं होता । 

बाजारू ठंडे पेय पदार्थों से स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुँचती है यह तो लोग जानते ही नहीं हैं । दूषित तत्त्वों, गंदे पानी एवं अभक्ष्य पदार्थों के रासायनिक मिश्रण से तैयार किये गये अपवित्र बाजारू ठंडे पेय हमारी तंदरुस्ती एवं पवित्रता का घात करते हैं । इसलिए उनका त्याग करके हमें आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कृति में वर्णित पेय पदार्थों से ही ठंडक प्राप्त करनी चाहिए । यहाँ कुछ ग्रीष्मकालीन खाद्य व पेय पदार्थों की जानकारी दी जा रही है –

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।